राहुल गाँधी:विपरीत परिस्थितियों में कर्म पथ पर बढ़ता एक योद्धा

राहुल गाँधी

By: Vishal Gaur

राहुल गाँधी, जिनका जन्म भारत देश के एक ऐसे परिवार में हुआ। जिसने देश को एक नहीं, बल्कि तीन-तीन प्रधानमंत्री दिए। शायद बहुत से लोग ऐसे परिवार में जन्म लेने का सपना देखते हों, और सोचते हैं कि ऐसे व्यक्ति का जीवन कितना आसान होगा? दुनिया की हर वस्तु उसके पास होगी?पर क्या वास्तव में ऐसा राहुल गाँधी के साथ था ?चलिए कोशिश करते हैं , उनकी जिंदगी के कुछ लम्हों पर नज़र डालने की ।

जब राहुल गाँधी छोटे थे और इंदिरा जी जीवित थी , निश्चित ही वह राहुल गाँधी के जीवन के सबसे अच्छे  दिन थे। तब राहुल के पास इंदिरा जी जैसी दादी माँ थी , जो उसको अत्यंत प्यार करती थी। किन्तु जब राहुल १० वर्ष के थे और चाचा संजय गाँधी जी की दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। और राहुल के जीवन में उथल पुथल मचनी प्रारम्भ हो गयी।

राहुल की उम्र अभी 14 वर्ष ही हुई थी और वह अपनी बहन के साथ दून स्कूल में पढ़ रहे ,तभी उनकी दादी इंदिरा जी की हत्या कुछ लोगो ने कर दी। और राहुल की जिंदगी पूरी तरह बेपटरी हो गयी। राहुल को दून स्कूल छोड़ना पड़ा। उन्हें पूरी तरह से 10 -15 सुरक्षाकर्मियों  के बीच रहना पड़ा।कहीं भी जाने की अनुमति नहीं थी।  एक किशोर जिसकी उम्र 14 वर्ष थी , उसके लिए यह कितना पीड़ादायक होगा , इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। कुछ समय तक उन्हें पढ़ाई घर पर ही करनी पड़ी।

इसके बाद इन्हे राजीवजी द्वारा हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए भेज दिया। किन्तु 1991 में राजीवजी की मृत्यु का समाचार लेकर आये फ़ोन कॉल ने राहुल को बिल्कुल तोड़ दिया। पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर राहुल काफ़ी रोये और एक बार फिर उनकी पढ़ाई छूट गयी। किन्तु कुछ समय पश्चात उन्होंने अपनी पढ़ाई पुनः प्रारम्भ की ,किन्तु इस बार उन्हें अपनी पहचान छुपानी पड़ी और नाम बदलकर रहना पड़ा। यहां कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज से 1995 में एमफिल की डिग्री ली। इसके पश्चात राहुल ने मॉनिटर ग्रुप के लिए तीन वर्ष तक  काम किया ।

राहुल राजनीती में नहीं आना चाहते थे, किन्तु 2004 में कांग्रेस की हालत बहुत अच्छी नहीं थी। इसलिए कांग्रेस के लोगो के अधिक ज़ोर देने पर अमेठी से लड़ने का फैसला किया और अमेठी से पहली बार सांसद चुने गए और 2004 में कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनी। 2007 से इन्होने कांग्रेस के विद्यार्थी संघठन NSUI को मजबूत करने के लिए अनेक कार्य किये।

2010 के चुनाव में राहुल गाँधी को उत्तर प्रदेश के प्रचार की जिम्मेदारी दी गयी और कांग्रेस ने इस बार उत्तर प्रदेश में उम्मीद से कहि अच्छा प्रदर्शन किया और मनमोहन जी दुबारा प्रधानमंत्री बने।  मनमोहन जी ने बार बार राहुल जी से पद लेने का आग्रह किया। किन्तु राहुल ने पद न लेते हुए केवल कार्य करने की इच्छा जताई। 2011 में भट्टा परसौल में किसानो की बात को सुनने के लिए न केवल वहां गया, बल्कि किसानो के लिए एक मजबूत बिल भी ले कर आये।

इसके बाद मनमोहनजी की सरकार द्वारा भ्रष्ट्राचारियों को बचाने के लिए लाये गए ,एक बिल का खुले आम विरोध किया। जिसको मीडिया ने गलत तरह से प्रचारित किया और राहुल गाँधी का मजाक उड़ाया गया। किन्तु आप ही सोचिये , भ्रष्ट्राचारियों के खिलाफ खड़ा होना हिम्मत का काम है ?या उनके साथ ?राहुल ने अपने मन की सुनी और सच का साथ दिया।

किन्तु यह 2014 वह समय था , जब पूरा मीडिया कांग्रेस के खिलाफ था। मीडिया में मोदीजी की रैली प्रसारित की जाती थी। राहुल गाँधी के खिलाफ सोशल मीडिया पर खूब मजाक उड़ाया गया।उन्हें नए नए नाम दिए गए और कांग्रेस के लोग चुपचाप यह देखते रहे। क्योकि न केवल विपक्ष में बल्कि कांग्रेस में कुछ लोग चाहते थे कि राहुल आगे नहीं बढ़ना चाहिए। किन्तु राहुल ने हार नहीं मानी और वह चुपचाप कांग्रेस के लिए कार्य करते रहे। लेकिन कांग्रेस को इसका नुकसान हुआ और कांग्रेस न केवल 2014 का चुनाव हारी , बल्कि राहुल को आगे न करने के कारण लगातार चुनाव हारती रही। राहुल समय समय पर लोगो के मुद्दे उठाते रहे ,चाहे  Net Neutrality का मुद्दा हो , किसानो की समस्या हो या अन्य कोई।

किन्तु इसके बाद एक समय ऐसा भी आया कि कांग्रेस की अहसास हुआ कि राहुल गाँधी को आगे करना चाहिए और राहुल ने कमान संभाल गुजरात चुनाव की बागडौर अपने हाथ में लेने का फैसला किया और गुजरात में बीजेपी को 99 सीटों में रोकने में कामयाब रहे। इसके बाद अमरिंदर जी के नेतृत्व में पंजाब जीता और कर्नाटक में JDU के सहयोग से सरकार बनाने में सफल रहे। इसी बीच उन्होंने न केवल नोटबंदी का कड़ा विरोध किया , बल्कि GST , किसानो की समस्या , सैनिको को समस्या , दलितों पर अत्याचार , OROP , महंगाई , भ्रस्ट्राचार  जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरा और सरकार को झुकने को मजबूर किया।

आज भी लगातार राहुल गाँधी लोगो की समस्या को उठा रहे हैं,किन्तु संघठन के मजबूत न होने और क्षेत्रिय नेताओ के लोगो के बीच संवाद की कमी तथा दूसरी ओर बीजेपी जैसे बड़े संसाधनों वाली पार्टी जिसकी पिछले 4 साल में सम्पत्ति ,कांग्रेस और बाकि पार्टियों से कई गुना अधिक है (जबकि कांग्रेस ने लगभग 55 साल शासन किया)और मीडिया  एक बड़े धड़े के बीजेपी के साथ होने के कारण आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिल पा रही है।

अंजाम कुछ भी हो ,पर एक बात स्पश्ट है ,राहुल एक योद्धा की तरह चुपचाप कांग्रेस को मजबूत करने में लगा है। वैसे भी जिसने अपने बचपन में ही इतना कुछ सहन किया हो, तो वह अब क्या हार मानेगा। जिसने अपने पिता और दादी को खोया और वह हर बार उठा परिस्थितियों को सामना करने के लिया और जीता।

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